Tuesday, January 17, 2012

कोई शब्द ,
कोई गीत,
कोई वाक्य ,
कोई व्यक्ति ,
कभी यूं ,
समाधि सा लगे ,
खोये ऐसे की ,
आंखो को ,
बंध रखे ही
हंमेशा जैसे सो जाये.!
**ब्रिंदा*
खुबसूरत अंदाज़ से कहेना,
वो ही तेरा हंसना ,
फीर तेरा चाँदनी सा
बिखरना ,
और पलकों पे चादर सा गीरना !
**ब्रिंदा**

Sunday, January 8, 2012

तुम....
.
.
.
तुम
.
.
लिखती हुं !
लिखती रहेती हुं!
पर क्या लिखुं?
तुम्हे जोडा रोज़,
आकाश से ,
सुरज से,
हवांओसे ,
यहां तक की,
हर एक ऋत के पल के साथ ,
पर तुम हो की,
जोडना मुज़से तुम्हारा खतम नही होता!
सोचा की तुम्हे याद कैसे रखुं?
और भूलुं भी तो कैसे??
तुम...
.
.
हां तुम,
एक रुप नही हो,
की मिटेगा कभी !
एक पल नही हो,
जो दुसरा पल चून लूं!
तुम्,
जैसे बहेती धारा हो,
जिसमे मै सिर्फ बहेती रहूं,
और बस,
फैलती हुं तुम्हारी बांहो मे!
ना याद करना ,
ना मिटाना,
सिर्फ, तुम जो हो,
तुम मे जींदा रहुं !
तुम...
.
.
क्या मैं कभी लिख पाऊगी तुम्हे!!
तुम!
**ब्रिंदा**