देखो,
सपने से मिला सपना,
तुम तो बिलकुल वैसे ही, जैसे सामने होते हो,
वो ही अल्लहडपन~ आवारगी,
हंसना तुम्हारा वोही, बेरुखी भी....इश श श...वोही!
बोलो,
तुम भी तो वोही, चलते फिरते,
अपने बालो को सहलाते,
और मेरी तरफ अपनी आंखे ठहराते हुए,
आंखो मे जैसे लब्झ जमे हो,पर कूछ कहेते ही नही !!
सुनो,
लोग कहेते है की सपनो की दुनिया बडी हसीन होती है,
पर, तुम तो वोही तुफानी आंखो के साथ मिलते हो,
आंखों मे ही क्या अपना प्यार छुपाते हो?
सपने मे भी दिल क्युं दिखाते नहीं?
सोचो,
लोग कहेते है की सपनो मे परवाली परी होती है,
पर, तुम और मै तो युहीं हाथ मे हाथ लिये बाते किये जा रहे हैं~ हंसते हुए,
लोग ना जाने कैसे बीना पंख उडते है , खयालो में,
और तुम, मुजे बिना पंख अजीब सफर कराते हो!
एक बार कहो,
मेरे सपने मे मीला तुम्हारा सपना !!
**ब्रिंदा**
Friday, September 23, 2011
Thursday, September 15, 2011
मै तुम्हारी यादों का तर्जुमा करती रही रातभर,
दरवाझा खोलके याद आई,
पर सन्नाटे सी गुंजती रही रातभर!
युं सोचुं के सामने तुम हो,
पर परछाई सी छाई रही रातभर !
आवाझ तो कोई न थी कही भी,
पर सरआम गीत गुंजता रहा रातभर!
तुम्हारी उन्गलीयोंमे उंगलीयां पीरोके,
गिन्ती सही की थी मिलनेकी,
पर तन्हाई ही कटती रही रातभर !
काश,की तुम याद के साथ चले आते,
पर, सिने मे याद चुभती रही,
पुकारने के लब्झ न मीले रातभर !
काश, तुम मिले ना होते
ऍक बेमौसम बारीश की तरह,
पर मील गये हो तो बरसते क्युं नहीं रातभर !
**ब्रिंदा**
दरवाझा खोलके याद आई,
पर सन्नाटे सी गुंजती रही रातभर!
युं सोचुं के सामने तुम हो,
पर परछाई सी छाई रही रातभर !
आवाझ तो कोई न थी कही भी,
पर सरआम गीत गुंजता रहा रातभर!
तुम्हारी उन्गलीयोंमे उंगलीयां पीरोके,
गिन्ती सही की थी मिलनेकी,
पर तन्हाई ही कटती रही रातभर !
काश,की तुम याद के साथ चले आते,
पर, सिने मे याद चुभती रही,
पुकारने के लब्झ न मीले रातभर !
काश, तुम मिले ना होते
ऍक बेमौसम बारीश की तरह,
पर मील गये हो तो बरसते क्युं नहीं रातभर !
**ब्रिंदा**
Thursday, September 1, 2011
"તુ એક ક્ષણ માંગે,
ને અહી તો ક્ષણૉ નો દરિયો,
એક ક્ષણ ક્યાંથી હાથ આવે?"
ક્ષણિક તારુ આગમન ને અનુરાગ,
ક્ષણમા જ તે જાણે અકળ બન્યું ,
સ્થળ કાળની સીમા વગરની ક્ષણ,
સ્થાયી બની ને જીવન બક્ષે તો શું?
લોકો છોને કહે જીવન ક્ષણભંગુર,
ક્ષણ ક્ષણનાં સેતું ઉપર ચાલતા ચાલતા,
કેવું માત્ર ક્ષણિક તને મળવું,
તોયે , એ જીંદગી,
કેવું અલ્હાદક આલિંગન મારું તને!!
*બ્રિંદા*
ને અહી તો ક્ષણૉ નો દરિયો,
એક ક્ષણ ક્યાંથી હાથ આવે?"
ક્ષણિક તારુ આગમન ને અનુરાગ,
ક્ષણમા જ તે જાણે અકળ બન્યું ,
સ્થળ કાળની સીમા વગરની ક્ષણ,
સ્થાયી બની ને જીવન બક્ષે તો શું?
લોકો છોને કહે જીવન ક્ષણભંગુર,
ક્ષણ ક્ષણનાં સેતું ઉપર ચાલતા ચાલતા,
કેવું માત્ર ક્ષણિક તને મળવું,
તોયે , એ જીંદગી,
કેવું અલ્હાદક આલિંગન મારું તને!!
*બ્રિંદા*
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