Sunday, June 5, 2011

धुंआ धुंआ सा है,तेरे मेरे बीच,
पर,मुझे दिखती है सिर्फ तेरी अधःमुंदी सी आंखे!

जब सपने देखने चाहीये अपने लिये तुझे,
पर, तुम देखते ही देखते पी लेते हो धूंधला जहां सारा!

मैन देखुं धूआं को सुबह की ओंस,तीतलीयां, खीलते फुल की तरहा,
पर,तुम हो की देखते हो उस्मे अपना भविष्य धूधला सा!

वो जलता हुवा लाल अन्गारा तेरे मेरे बिच,
जैसे बचा हुवा जहां तुम्हारा जल रहा अंतरमन सा !

मैं देखुं वो लाल अंगारा उगता हुआ सुरज तेरे कल का,
पर,तुम्हे दिखता वो, अनकहे, सुलगते ख्वाब सा !

मैं देखु झिल मिल कोह्ररा झिल के उपर छाया सा,
पर,तुम उस्मे देखो, अपने आप को अजनबी सा, गुमनाम सा!

मैं देखु प्यार भरा दिल तुम्हारा खोया कहीं धूंएमे जरा सा,
पर,तुम गुम्सुम से खोये ऐसे की प्यार क्या महेसुस करते थोडा सा?

मैं तुम्हे पता नही मिल पाऊं कि कह पाऊं इतना सा,
धूंआ धूंआ से है लोग सब यहां,
उनके लिये क्या धूआं होना????????????
**ब्रिंदा**

please say no to tobaco.!

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