Saturday, April 28, 2012

बडी मगरुर होती हैं ये उंगलीयां,
अपनी सोच को बडी महेफूझ रखती है उंगलीयां !
जितना चाहो सोच लो, ये आंखे थोडी है?,
जो बतलाये राझ दिल के, बहुत कूछ छुपाती है उंगलीयां !

लिखवाने से कहां लिखति है उंगलीयां,
ये तो सिर्फ दिलके ईशारे समजती है उंगलीयां !
दिलकी सब खिडकीयों को 
अपनी नोक पे कहां खुलने देती है ये उंगलीयां??

जब दिल का मरिझ हो तो खुब उसे नचाती है , ये उंगलीयां,
और कभी खुद दिल पे मझबूर बनकर नाचती है ये उंगलियां !
तुम्हे याद करना और मिलने के दिन की गिनती करना
बस, ऐसे ही गिनती के काम करती है ये उंगलियां !

पर्,तुम्हे क्या बताऊं? 
कई बार  तेरा नाम   लीख लीख के मीटाती हैं उंगलीयां !
तुम्हे देखे बीना तुम्हारे नाम लिखना,
और तुम्हे सुने बीना गझल लीख लेती है ये उंगलियां!

क्या करुं बहुत मगरुर हैं ये उंगलियां!
 
ब्रिंदा**

Monday, April 23, 2012

જીવનનો વણથંભ્યો પથ્,
ને સામે અફાટ તટ,
ને સાગર કાંઠે આથમતો સુરજ,
ને સોનેરી તડકો ,
ને તોયે દરીયો દિલનો મોરપીછ્છ !
સામે તું ,
ને હાથ માં ગ્રંથ {વાંસળી નહીં},
પાનાંઓ વચ્ચે મોર્પીછ્છ ફર્ફરે,
.
.
.
ક્યારેક તો મળીશ!
ને  ક્યારેક સાથે જીવનગ્રંથ વાંચશું !
**બ્રિંદા**

Thursday, April 19, 2012

And U told me,
'' U R Alive,
 thats it,
and,
 thats the truth,"
तो देखो, जिंन्दा हुं मैं,
प्यार मे तपते हुए सोने जैसा खरा होना
और चान्दी सा कोमल मन पाना
और सोचना की पारद के पार परख से जिन्दा हुं मैं !

ये हर उम्र के अहेसास के बारे मे लिखना,
और तुम्हारा वो ही मुस्कुराते मेरी आंखो मे देखना
और मुझे महेसूस कराना की जिन्दा हुं मैं !

दो लफ्झो के बीच में तेरा गुनगुनाना
और जिंदगी का सफर एक गीत बनाना
और मेरा ये गाना, "देखो ना...जिंदा हुं मैं"!

मीलना,रहेना साथ सदा और ऐसे ही कभी बछडना,
अपने प्यार को पलपल ख्वाबो जैसे सजाना,
और तेरा मुझे सपना कहेना, मेरा नींद मे कहेना....जिंदा हुं मैं"!
**ब्रिंदा**

Monday, April 16, 2012

रोज एक नया शब्द चूनुं,
की पक्का, ईसी पे ही मैं लिखुंगी तुम्हारे बारे में!
फीर लिखते वक्त वो फीका लगे,
तुम्हारे बिना कटती दोपहर की धूप जैसा,
कडी धूपसे शब्द चूभते हैं,कांटे लगाते हैं,
और मैं पलके झुका लेती हुं!

फीर सोचूं,कोई नया शब्द,
तो कभी वो लगे नया चांद हो जैसे,
दुज का चांद हो जैसे!
फीर मैं निहारुं प्यार से उसे,
तो निहारने में वक्त चला जाये!

चांद को भी मालुम हैं की मुजे लिखना हैं,
वो मन ही मन मुकुराता हैं ,
की "पागल हैं....लिखेगी नही, सोचती रहेगी...."
ताझे चांदनी के दूध में डूबते हैं शब्द और मैं भी !
पर मैं, परदा खींच लेती हुं, खिडकी के,
और नया शब्द चूनती हुं. शायद... नया शब्द तुम , तुम !!

कहो?
फीर लिखना क्या? मैं खो जाती हुं, तुम में !
गर ,एक दिन सच में  डूब  जाऊं, खो जाऊं
ईसी लिये रोज चूनती हुं एक नया शब्द !
तुम्हे कहेना कुछ छूट ना जाये,
ईसी लीये चूनती हुं रोज एक नया शब्द !
**ब्रिंदा**

Tuesday, April 10, 2012

गर, कोई मुझे पूछे,
कौन सा शब्द है तुम्हे प्यारा? ?
तो मैं कहो क्या कहुं?
कैसे कहदूं उसे मैं नाम तुम्हारा ? ?

पर ना....,
तुम्हारा नाम लेते वक्त,
छा जाता है स्पंदनो का वलय,
और उसमे खो जाती है, मेरी आंख, मेरी सांस,
तो कहो,मैं कैसे सरल आवाझ मे बोलुं नाम तुम्हारा ? ?

मगर हां....,
वो चूप्पी,वो देखना, वो आंखो मे मुस्कुराना तुम्हारा,
दिल के नभ पे छा जाना काले बदलो की तरह,
तो बीना भिगे कैसे पुकारूं मैं नाम तुम्हारा ? ?

गर, अच्छा हो कोई ना पुछे,
कौन सा शब्द तुम्हे है प्यारा! ? ?
**ब्रिंदा**

Monday, April 2, 2012

I learn:

એય , તને ખબર છે?
સ્પષ્ટ જોવું એટલે શું?
મારા ચશ્માનાં કાચમાંથી
આરપાર જોવું...કે...
કેમેરાનાં લેન્સની આરપાર જોવું?

ના રે....,
સ્પષ્ટ એટલે જે લખાયેલું નથી ને,
... જે વંચાતું પણ નથી ને,
બોલાતું પણ નથી ને,
મૌન પણ નથી....!

તો ક્યારેક,
આંખે થી ફુટતું હસવું ને,
હૈયે થી ઘૂટાતું સમણૂં ને,
કાયમ.....
તને ને મને જે સ્પષ્ટ જોવાય,
ને તે કાયમ સાથે જીવાય,
તેટલું સ્પષ્ટ જોવું....

સતત ધબકતા ધબકાર જેવું ને,
વરસાદ પછીનાં તડકા જેવું,કોરું-કટ્ટ,
તે સ્પષ્ટ છે,
જ્યારે બધા આડંબરના પડળૉ સરી પડે ને,
સરળતા થી જોવું ,
તે સ્પષ્ટ છે !
**બ્રિંદા**