Tuesday, September 25, 2012

तापी ने मुज से पूछा ,,,,
" क्यों डोले है मन तेरा , मेरी तरह...
                जब बादल गरज के  बरसते है !
क्यों सौ किरणे चमके तेरी आँखों में , मेरी तरह ...
              जब सूरज तेरे माथे पे चमकता है !

क्यों इतनी मचलके लेती है सौ अंगडाईया , मेरी तरह ,
               जब कोई आवाज़ बिजली बनके दिल पे गिरती है !

क्यों निरंतर धारा में बहेती है , मेरी तरह ,
             जब बांवरा मन कही और दौड़ता है !

क्यों सब कुछ बहा के ले जाती हो , मेरी तरह ,
             जब मन किसी से पगला जाता है !

क्यों आसमान छुपा लेती हो सीने में,  मेरी तरह ,
           जब साँसे बैचैन किसी की होती है !

क्यों कोहरा छाए तुम पर तो, मेरी तरह ,
          जैसे खुद को छुपाती हो  दुनिया से !

क्यों मेरे बिना किसीका  सहारा है कोई ,
         ना तेरे बिना किसीका है कोई !!

फिर तू अपना नाम " तापी " क्यों नहीं
       रख  लेती ... ओ अलबेली ..हममम ??
**ब्रिंदा **
         

Sunday, September 23, 2012

તાપી એ મને પૂછ્યું ::
" ખળ ખળ વહેવું એટલે શું ?

બંને કિનારા ને અડી ને છલ્લોછલ્લ વહેવું એટલે શું ?
શાંત ને મધ્ધમ  વહેણ થી કિનારા પર ચાસ પાડવા એટલે શું ?

ને છતાં આખા આકાશ નું પ્રતિબિંબ દિલ માં સતત જીલવું એટલે શું ?
ને આભનાં અસંખ્ય તૃપ્ત  અ
તૃપ્ત બિંદુ ઓ ને , ખુલ્લી છાતીએ જીલવા સધસ્નાતા થવું એટલે શું ?

ચો-દિશ ની અકળ-વિકલ હવાઓ માં પણ અવિચલિત રહેવું એટલે શું ?
જળ - ના - ઉદર માં અસંખ્ય હલચલ પછી યે મોતી ને જન્મ આપવો એટલે શું ?

બંધ નાં બંધનો ને પણ અવગણીને અંતે સાગર મિલન કરવું એટલે શું ?
વીસે- આંગળે થી  ઝરણ વહાવી ને, હૃદય નાં પ્રેમ ને સતત સીંચવો એટલે શું ?

સતત વહેતું રહી ને - વહેતું કરી ને , સ્ત્રી -ત્વ ને જાળવી રાખવું એટલે શું ?
તને એ ખબર છે કે " તાપી " થવું એટલે શું ?
**બ્રિન્દા **

Friday, September 21, 2012

મૃત્યુ એટલે સરળ થવું ......!

એક વાર " આંખ મીચી " ને તારા મય થવું ,
નાં કોઈ ચર્ચા ને કોઈ વિવાદ ..........,,
માત્ર એક જ મત પર સમર્પિત થવું .

કદાચ જ પાછા વળાય
એવા વળાંક ઉપર મંઝીલ નું થવું !
અહા! મૃત્યુ એટલે સંપૂર્ણ થવું .

જો કદી પાછા મળે ઉપર એજ ચહેરાઓ કવચિત ,
તોયે એટલા જ પરિચિત રહેવું !!
એટલે જ મૃત્યુ એટલે સરળ થવું .

તારા ને મારા નો ભેદ ક્યાં છે મૃત્યુ માં ?
મર્યા પછી બધા ને "અમર " થવું ,
કઈ કર્યા વગર બસ, અમર થવું એટલે મૃત્યુ થવું .

મૃત્યુ પછી " બહુ જ સારું કરી ને ગયા "
એમ કહેવાય એવું અટપટું જીવવું !
તો યે મૃત્યુ એટલે આખરે "એક " થવું .
**બ્રિન્દા **

Wednesday, September 19, 2012

आवाज़ है की कितनी बोलती है,,, ,वो भी  कई सुरों में !

गुलजारजी ने अस्कर कहा है की .....
"बोलिए सुरीली बोलियाँ.... बोलिए ....""
पर आवाज़ है की अनेक सुरों में ही बोलती है बोलियाँ !!

तुम्हे मै क्या कहु !!
तुम याद आते हो तो सुस्त चुप सी साँस जैसे
बोलती है बोलियाँ !

तुम्हे क्या , याद आना पर तुम्हारा न आना !
आने पे तुम्हारे , ये आवाज़ में आ जाती है ,
जैसे जान , मेरे जाना !

कैसे लहेराती सुरों में सुरीली बजती है मेरी बोलियाँ ,
उफ़ ..... ये आवाज़ है की कितने ताल में डोलती है !!
क्या कहे ये बोलियाँ !

आंखोमें  आंसु न भी हो तो आवाज़ आंसु में डुबोती है  बोलियाँ ,
दर्द के परिंदों को अपनी कोख में छुपाके गुटर -गुं ...
सी बोलती है ये बोलियाँ !!

पर तुम्हे क्या !!??
तुम्हारे कई कहेकाहे में अक्सर डूब जाती है
मेरी नर्म बोलियाँ !!

आवाज़ है की .........................!!
**ब्रिंदा **






Thursday, September 13, 2012

मेरी आँखे तो  है पर देखती नहीं कुछ ....
 पता नहीं कहाँ  पर टिकी रहेती  है !!!!

आते जाते है सारे नज़ारे .....
बस ऐसा होता रहा जिंदगी भर
पर ,,,, आँखे है की कुछ देखती नहीं !!!

मै सोचु , आँखे है या आयना .......,
पता नहीं उसमे देखु तो 
सिवा तेरे कोई और तस्वीर  दिखती नहीं  !!

आँखों को जपका कर देखा ,
चाहा  बहुत की कुछ और देखलु,
पर आँखे है की कुछ बदलती ही नहीं !!

शायद , मन होता या मानुष तो बदल भी जाता ,
पता नहीं खुदा ने क्या आँखे दी है ,
और कुछ देखती ही नहीं !!

पर मै चाहुं की पलकें हमेशा करलु बंध,
ऐसे भी ये कुछ देखती नहीं  ,
जाने क्यूँ ......मेरी आँखेतो  है पर कुछ देखती नहीं !!!!
**ब्रिंदा **

Tuesday, September 11, 2012

तुम्हारी यादो का भीना भीना दरिया ,
मेरे नर्म पाव को छू रहा है !

लोग तो बहेते पानी में पाँव मिगोते है,
पर मै तो तेरे दरिया से  तूफानी दिल में पाँव डुबाए बैठी हु !

तुमने छुआ था नर्मी से ,वही उँगलियों को ,
 भीना भीना  सा यादो का दरिया छू रहा है !

मै और मेरे सामने ढलता हुआ सूरज
बस...,,,
बीच में
कभी ....बारिश ,
कभी ...कोहरा ,
कभी ....तपती गर्मी ,
आती  रहेती है .....आती रहेती है !

मै ऐसे ही बैठ के सालो से सोचती रहेती हु
की तुम
बस ....,,,,,,
आते हो ...
आ रहे हो .....
आ गए हो .....

मेरी सोच गीली सी मेरी आंख में बस जाती हैं !
तुम्हारी यादो का बेबस दरिया .....................
मेरी आँखों में फ़ैल रहा है ........फ़ैल रहा है !
**ब्रिंदा**
पागलपन सा शोर है दिल में ....

आवाज़ अंदर है दिल में .........

मगर चिख उठती है आसमान में !

चिखु, चिल्लाऊ और सब को बताऊ क्या ?

मुझे तुम से बहोत प्यार है ........

मौन की भाषा में ना जाने कितने पर्याय है ....

तुजे गर मै ये कहु ,

तुम से मुजे बहोत नफ़रत है !


एक तू ही है,

जीसके कारन दुनिया से मै अलग हु ,

वरना सुबह से शाम

दुनिया में मेले क्या कम है ?


पागलपन में हसना जायज़ है,

मुस्कुराहट अंदर है दिल में ,

मगर कहकहे खुल्लेआम है !


तेरा चुपके से आंखो में ही मुस्कुराना

शायद मेरे पागलपन की दवा है !

**ब्रिंदा **