Tuesday, September 11, 2012

तुम्हारी यादो का भीना भीना दरिया ,
मेरे नर्म पाव को छू रहा है !

लोग तो बहेते पानी में पाँव मिगोते है,
पर मै तो तेरे दरिया से  तूफानी दिल में पाँव डुबाए बैठी हु !

तुमने छुआ था नर्मी से ,वही उँगलियों को ,
 भीना भीना  सा यादो का दरिया छू रहा है !

मै और मेरे सामने ढलता हुआ सूरज
बस...,,,
बीच में
कभी ....बारिश ,
कभी ...कोहरा ,
कभी ....तपती गर्मी ,
आती  रहेती है .....आती रहेती है !

मै ऐसे ही बैठ के सालो से सोचती रहेती हु
की तुम
बस ....,,,,,,
आते हो ...
आ रहे हो .....
आ गए हो .....

मेरी सोच गीली सी मेरी आंख में बस जाती हैं !
तुम्हारी यादो का बेबस दरिया .....................
मेरी आँखों में फ़ैल रहा है ........फ़ैल रहा है !
**ब्रिंदा**

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