Saturday, April 28, 2012

बडी मगरुर होती हैं ये उंगलीयां,
अपनी सोच को बडी महेफूझ रखती है उंगलीयां !
जितना चाहो सोच लो, ये आंखे थोडी है?,
जो बतलाये राझ दिल के, बहुत कूछ छुपाती है उंगलीयां !

लिखवाने से कहां लिखति है उंगलीयां,
ये तो सिर्फ दिलके ईशारे समजती है उंगलीयां !
दिलकी सब खिडकीयों को 
अपनी नोक पे कहां खुलने देती है ये उंगलीयां??

जब दिल का मरिझ हो तो खुब उसे नचाती है , ये उंगलीयां,
और कभी खुद दिल पे मझबूर बनकर नाचती है ये उंगलियां !
तुम्हे याद करना और मिलने के दिन की गिनती करना
बस, ऐसे ही गिनती के काम करती है ये उंगलियां !

पर्,तुम्हे क्या बताऊं? 
कई बार  तेरा नाम   लीख लीख के मीटाती हैं उंगलीयां !
तुम्हे देखे बीना तुम्हारे नाम लिखना,
और तुम्हे सुने बीना गझल लीख लेती है ये उंगलियां!

क्या करुं बहुत मगरुर हैं ये उंगलियां!
 
ब्रिंदा**

No comments:

Post a Comment