Tuesday, May 15, 2012


कभी मूडके पीछे देखु तो
याद आता है,
मेरी पहेली वसन्त का तेरा वो,
आंखों से चुमना मेरे गालो को !
याद है? वो गिराया था सावन्
झुम के मेरी आंखो से..........
और तुम ने उसे दिलमे सम्हाला हौले से !


कभी मूडके पीछे देखु तो 
कांरवां सा चला आ रहा हैं, 
यादो का रुमझुम करता हुआ !
ख्वाब दिखलाये नही तुम ने फिरभी,
जीना ख्वाब सा मासुम बनाया सच में !


कभी मूडके पीछे देखु तो 
लगे नही की ईतना जीये हम,
जीते गये साल- महिने- दिन ,
पर तेरी गुनगुनाहट में रातदिन जैसे सिमटे रहे!


कभी मूडके पीछे देखु तो 
तुम ने कहा था ,
कहीं ऐसा तो नही की पीछे जिंदगी 
तो कल आगे मौत हैं?
तो तुम जी लो..!!


तो आज मैं मेरे लीये जीलुं,
आज मैन्ं वक्त के साथ तैरलूं,
इतनी तरल हो जाऊं की
कल मैं न रहुं तो 
तेरे ख्वाबो मे तैरती रहुं हर पल.!!

कभी मूडके पीछे देखु तो 
तुम ही तुम हो... सच मे....!!

**ब्रिंदा**

No comments:

Post a Comment