Friday, November 12, 2010

चलते होंगे हम दोनो,
जैसे एक ही शहर मे है दोनो!
सुरज रोज की तरहा डुबता होगा,
हवांए भी सुंदर सी सजीली,
सुनहरी धुमती होगी,
तेरी मेरी दुरीयां के बीच!

तुम एसे ही टहल्ते होगे,
मोहल्ले के बीच
और
आंखे मेरे ही खयाल मे
डुबती होगी!

जब होता होगा खयाल मे ,
हसके आना मेरा,
सांसे तुम्हारी जरा
तेज युंही हो
जाती होगी !

मै भी ऐसे ही
झुले पे मेरे गेसुओ को
युहीं सहलाते लहेराऊगी
आंखे तेरे खयाल मे
युहीं
खोयी सि झुकी होगी!

पर आंखे तितली बनके
ऊड पडेगी तेरी ओर,
दिल मिलने को,
युहीं
बेकरार होता
रहता होगा!

सिर्फ हवाएं आपस मे
बांट लेगी सांसे हमारी,
वो सोचे शायद्
युहीं
हमे जरा सा करार मीले भी!

चलते होंगे हम दोनो
जैसे एक ही शहर मे दोनो,
एक दुसरे मे
युहीं
एक दुसरे को
ढुंढते हो दोनो!

**ब्रिंदा**

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