Wednesday, October 27, 2010

आज मैने थाली मे चांद को पीरोसा,
कटोरी ,प्याला और बिछौना सब चांद से सजाके रखा,
की तुम आओ तो चांद के बिछौने बैठो !
पर तुम कहां...........
आज मैने माथे पे चांद का ही शिंगार किया,
कंगना, झुमका,पायल सब चांद ही चांद,
की जब तुम मुझे छुओ तो चांदनी नझर आए !
पर तुम कहां...........

गली के चौराहे पे भी चांद को खडा रखा,
की रात के अंधेरे मे तुम कही खो ना जाओ,
की तुम मेरे और सिफर्फ मेरे पास आओ !
पर तुम कहां..........

देखो,! मैने चांद को अब मेरी आंखो मे सजाया,
मेरे होठों पे,गालो पे. सीने पे सजाया,
की तुम हर जगह उसे देखो,
पर देखो,! अब मैं ही चांद बन गई,!!
पर तुम कहां..........

कहेते है चांदनी रात सब को हसीं,खुबसुरत करती है,
तो मैने भी ईतने सारे चांद बिछायें,
की तुम आओ और मैं भी और खुबसुरत बन जाऊं,
पर तुम कहां.........
**ब्रिंदा**

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