Sunday, October 30, 2011

मूस्कुराती आंखे......
देखती रही...दिखती रही...हर पल जैसे!

शांम होने वाली थी पर,
शाम हो गई सुरीली जैसे,
धीमी हवा से डाल के पत्ते भी हीलते-गाते थे,
उसमे चमकती हुई धूप भी गाने लगी मुस्कुराते जैसे !

मैं तो चलती रही पर मेरे पीछे ,
पीछे पीछे आती रही तेरी मुस्कुराती आंखे वैसे,
शोख आंखो के तुम,
या आखे तुम से शोख !!!
क्या कहें .....पर में शोखीयों मे डूबी जैसे !!

मुस्कुराती आंखो का ये सफर,
दोनो एक दुसरे मे मुस्कुराती,
पर साथमे सारी दुनिया इतनी सुर मे गाती जैसे,
ता..क...धी..न...

**ब्रिंदा**

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