Wednesday, February 22, 2012

मिलती रही ,
हरदम, हमेशा से,
सदीओ से,
जन्मो से,
पर कभी तेरी आंखे बादामी,
कभी नीले दरिया सी,
कभी भुरे कोहिनुर सी,
पर....
ईस बार कुछ ज्यादा ही,
रंग लिये हुऍ है !

पर्...
हम तुम मिलते रहे,
ईस जग की धरती , चांद सितारे तो,
वही के वही..
वो देखते रहे है,
हमेशा से,
हमारा मिलना,
फीर कभी ना भी मिलना,
बिछडना हमारा !

वो सोचते रहेते है.....
"हम है जो बदलते नही है,
ये ईंसान कैसे बदलते है??"
सुनो,,
सोचो की हम है नझारा उनके लिये ,
क्योंकी हम तो बारबार  बदलते है ना ?

वो भी हमे देख रहे है,
ये नदी, पर्बत् सागर्.....
हम उन्हे देख रहे है,,,,
ना वो बदले ,
ना ही हम!
**ब्रिंदा**

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