आंखे जब मूंदते होंगे तुम ,
रोजबरोज के काम से निपटते ,
उसी राह से गुजरते हुए !
अपने को इस दुनियासे काटते होगे तुम,
फिर अपनी ही दुनिया बसाते हुए ,
अपने आपको अपने आप में फैलाते हुए ,
कही से छुपके से आता होगा एक साया ,
और चौकते होगे तुम,
तुम्हे तुमसे दूर ले जाता होगा तुम्हे छुते हुए!
जैसे किसी अजनबी दुनिया में पहुचाते हुवे !
जब आँखे मूंदते होगे तुम, फिर उसी खयालो में,
एक साया ,साया सा ही ,
धुंधला तुममे जैसे घुलता हुवा !
आँखे फिर मूंदते होगे उससे लिपटते हुए ,
जैसे क्षण भर में क्षणभर की जिंदगी जीते हुए !
फिर मुस्कुराके खयालो में फिरसे आँखे मूंदते होगे!
**ब्रिंदा **
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