Friday, August 17, 2012

कहां जायें हम ? कहो !
बारीश के बाद धूले हुऍ चांद की तरह ,
खडे हैं हम !
एक ही तो था गुन्हा,
तेरे संग दिल लगाने का !

एक दो, तीन......सौ पल,
ठहेरे से थे हम,
सिर्फ तुम आते जाते रहे,
एक ही, सिर्फ एक ही तो था गुन्हा,
तुम्हारे संग न चलने का !

तुम देखो तो, कितना गर्म है पानी आंखो का,
बहाते रहे हम,
नादानी में हमने कहा,"ना"!,
कहां जाये हम्?
एक ही गुन्हा कर बैठे, ना कहेने का !
**ब्रिंदा**

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